भौतिकी :पाठ -5
विद्युत-धारा का चुंबकीय प्रभाव
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10th Physics Solutions (Notes) in Hindi
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. धारावाही तार अपने चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है। इसे दिखाने के लिए ऑस्ट्रेड के प्रयोग का वर्णन करें।
उत्तर –ऑस्ट्रेड का प्रयोग - इस प्रयोग को करने के लिए एक चालक तार AB को उत्तर-दक्षिण दिशा में तान दिया जाता है। तार के ठीक नीचे एक चुंबकीय सुई NS रख दिया जाता है। जब तार से कोई विद्युत-धारा नहीं प्रवाहित होती है तब सुई पृथ्वी के चुंबकत्व के कारण उत्तर-दक्षिण दिशा में स्थिर रहती है। फिर, जब तार AB में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तब सुई विक्षेपित होकर लगभग तार के लंबवत हो जाती है। तार से होकर प्रवाहित धारा की दिशा को उलट देने पर भी सुई का विक्षेप तार के लंबवत तो होता है पर इस बार सुई के ध्रुव की स्थिति पहली बार की स्थिति की अपेक्षा विपरीत रहती है। धारा की दिशा को समान रखते हुए जब तार को क्रमश सुई के ऊपर और नीचे रखकर प्रयोग को दुहराया जाता है तो सुई विपरीत दिशा में विक्षेपित होती है।
इसका चित्र आप भारती भवन की पुस्तक में पृष्ठ संख्या 96 में चित्र 5.4 को देखकर बना लें।
अतः ऑस्ट्रेड के प्रयोग से ये पूरी तरह स्पष्ट होता है कि धारावाही तार अपने चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है। क्योंकि जैसे हम धारावाही तार की धारा की दिशा परिवर्तन करते हैं तो चुंबकीय क्षेत्र की दिशा में भी बदलाव आता है और यही बदलाव चुंबकीय सुई के विक्षेपन के रूप में देखने को मिलता है। धारा की दिशा बदलने के साथ ही चुंबकीय सुई की दिशा भी बदलती है।
2. धारावाही सीधे तार के कारण चुंबकीय बल-रेखाएं या चुंबकीय क्षेत्र पैटर्न दिखाने के लिए एक प्रयोग का वर्णन करें।
उत्तर – प्रयोग - एक मोटे तथा लंबे तांबे के धारावाही तार AB को एक क्षैतिज गत्ते के टुकड़े से होकर ऊर्ध्वाधरत व्यवस्थित करते हैं। तार के सिरे A को एक बैटरी के धन ध्रुव से तथा सिरे B को एक स्विच होकर S होकर ऋण ध्रुव से जोड़ते हैं और तार में धारा प्रवाहित करते हैं।
अब एक कंपास सुई को गत्ते पर रखते हैं। सुई की दिशा उस स्थान पर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा बताएगी। एक पेंसिल की नोक से सुई की उत्तर ध्रुव के स्थान को चिह्नित करते हैं। सुई को गत्ते पर इस तरह सरकाते हैं कि उसका दक्षिण ध्रुव वह स्थान ले ले जहां पहले उत्तर ध्रुव था। अब फिर उत्तर ध्रुव के स्थान को चिह्नित करते हैं। इस प्रकार से प्राप्त बिंदुओं को मिलने पर संकेंद्री वृत का प्रतिरूप या पैटर्न मिलता है। (इसका चित्र आप भारती भवन की पुस्तक में पृष्ठ संख्या 96 में चित्र 5.6 को देखकर बना लें )। उसी प्रकार धारा की दिशा को विपरीत कर देने पर वही संकेंद्री वृत का प्रतिरूप या पैटर्न मिलता है। अब इसमें चुंबकीय क्षेत्र की दिशा प्राप्त करने के लिए हम मैक्सवेल के दक्षिण हस्त नियम का उपयोग करेंगे।
मैक्सवेल के दक्षिण हस्त नियम अनुसार यदि धारावाही सीधे तार को दाएं हाथ की मुट्ठी में इस प्रकार पकड़ा जाए की अंगूठा धारा की दिशा की ओर संकेत करता हो, तो हाथ की अन्य अंगुलिया चुंबकीय क्षेत्र की दिशा व्यक्त करेगी।
3. किसी धारावाही वृताकार कुंडली के कारण चुंबकीय क्षेत्र पैटर्न दिखाने के लिए एक प्रयोग का वर्णन करें।
उत्तर – प्रयोग- तांबे का एक मोटा तार लेकर उसे वृताकार रूप में मोड़ देते हैं। एक गत्ते के टुकड़े को क्षैतिज रूप से व्यवस्थित करते हैं और गत्ते के टुकड़े में दो छेद कर उसमें वृताकार तार को इस प्रकार पार करते हैं कि तार का आधा वृत गत्ते के ऊपर हो और आधा नीचे। तार के खुले सिरों के एक बैटरी तथा एक स्विच से जोड़ देते हैं। गत्ते के पूरे टुकड़े पर कुछ लौह चूर्ण छिड़क देते हैं।
इसका चित्र आप भारती भवन की पुस्तक में पृष्ठ संख्या 97 में चित्र 5.8 को देखकर बना लें।
अब स्विच को बंद कर तार में विधुत धारा प्रवाहित करते हैं और गत्ते के टुकड़े को धीरे धीरे थपथपाते हैं। लौह चूर्ण दोनों तारों के चारों ओर संकेंद्रीय वृत में व्यवस्थित हो जाता है। इनसे वृतीय लूप में धारा के कारण चुंबकीय क्षेत्र के पैटर्न का पता चलता है। जहां धारा गत्ते के भीतर जाती है तथा जहां धारा गत्ते से बाहर आती है उनके चारों ओर कुछ दूर तक चुंबकीय क्षेत्र-रेखाओं का प्रतिरूप वृतीय होता है। किंतु धारा से दूर हटने पर क्षेत्र-रेखाओं का प्रतिरूप वृतीयता से विचलित होता जाता है। धारा के केंद्र पर तथा केंद्र के निकट और उसके दोनों ओर क्षेत्र-रेखाओं का प्रतिरूप लगभग सरलरेखीय होता है।
4. धारावाही परिनालिका के चुंबकीय क्षेत्र का वर्णन करें।
उत्तर – जब धारावाही परिनालिका से धारा प्रवाहित की जाती है तब परिनालिका के भीतर तथा उसके आसपास चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है। परिनालिका के भीतर चुंबकीय क्षेत्र परिणाम एवम् दिशा में लगभग नियत रहता है और इसकी दिशा परिनालिका के अक्ष के समांतर होती है। चुंबकीय क्षेत्र की दिशा मैक्सवेल के दक्षिण हस्त नियम से प्राप्त की जा सकती है। यदि परिनालिका को दाहिने हाथ से इस प्रकार पकड़ा जाए कि उंगलियां धारा की दिशा में हो, तो अंगूठे की दिशा चुंबकीय क्षेत्र की दिशा होगी।
इसका चित्र आप भारती भवन की पुस्तक में पृष्ठ संख्या 97 में चित्र 5.9 को देखकर बना लें।
धारावाही परिनालिका एक छड़ चुंबक के समान व्यवहार करता है। परिनालिका का एक सिरा उत्तर ध्रुव तथा दूसरा दक्षिण ध्रुव हो जाता है।
5. विद्युत-चुंबक की रचना सचित्र समझाएं।
उत्तर – विधुत चुंबक प्राय: एक नरम लोहे के छड़ को एक परिनालिका में रखकर बनाया जाता है। नरम लोहे को आसानी से चुंबकित और विचुम्बकित किया जा सकता है। जब परिनालिका में धारा में धारा प्रवाहित की जाती है तब परिनालिका में चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है जिससे नरम लोहे का छड़ शक्तिशाली चुंबक बन जाता है। जब धारा का प्रवाह बंद कर दिया जाता है तब नरम लोहा अपना चुंबकत्व खो देता है। परिनालिका में इस प्रकार से रखे गए छड़ को क्रोड कहा जाता है। क्रोड धारा के कारण चुंबक बन जाता है।
इसका चित्र आप भारती भवन की पुस्तक में पृष्ठ संख्या 97 में चित्र 5.10 को देखकर बना लें।
6. धारावाही चालक पर चुंबकीय क्षेत्र के प्रभाव को दर्शाने के लिए एक प्रयोग का वर्णन करें।
उत्तर – प्रयोग - लगभग 2 mm व्यास तथा 5 cm लंबी एल्यूमिनियम की छड़ AB लेते हैं। रबर या प्लास्टिक के दो छल्लों तथा दो पतले कमानियों द्वारा एक स्थिर आधार से छड़ AB को लटका देते हैं। छड़ के दोनों सिरों A और B को स्विच S से होकर एक बैटरी से जोड़ देते हैं। अब एक नाल चुंबक NS को इस प्रकार व्यवस्थित करते हैं कि उसके दोनों ध्रुव को मिलानेवाली रेखा क्षैतिज हो तथा छड़ AB के लंबवत हो।
(इसका चित्र आप भारती भवन की पुस्तक में पृष्ठ संख्या 98 में चित्र 5.11a को देखकर बना लें।)
(i) स्विच S को बंद कर धारा प्रवाहित करने पर हम देखते हैं कि छड़ नीचे की ओर खींच जाती है और कमानियां पहले से अधिक फैल जाती है।
(ii) नाल चुंबक को हटा लेने पर छड़ AB अपने पहले की स्थिति में वापस चला जाता है। इससे स्पष्ट है कि नाल चुंबक NS का चुंबकीय क्षेत्र धारावाही चालक छड़ AB पर बल लगाता है।
(iii) अब नाल चुंबक NS के ध्रुवों की स्थिति को उलटकर यही क्रियाकलाप दुहराते हैं। इस बार हम देखते हैं कि छड़ AB ऊपर की ओर उठ जाता है। अतः चुंबकीय क्षेत्र की दिशा उलट देने से धारावाही चालक पर लगते हुए बल की दिशा भी उलट जाती है।
(iv) अब यदि बैटरी के ध्रुवों को उलटकर छड़ AB में प्रवाहित होनेवाली धारा की दिशा को उलटकर ऊपर के क्रियाकलापों को दुहराएंगे तो पाएंगे कि बालों की दिशा क्रमश उलट गई है।
7. एक चित्र द्वारा विद्युत मोटर की कार्यविधि के सिद्धांत को समझाए।
उत्तर – विद्युत मोटर की कार्यविधि के सिद्धांत - विधुत मोटर में एक शक्तिशाली चुंबक है जिसके अवतल ध्रुव-खंडों के बीच तांबे के तार की कुंडली होती है जिसे मोटर का आर्मेचर कहते हैं। आर्मेचर के दोनों छोर पीतल के खंडित वलयों R1 तथा R2 से जुड़े होते हैं। वलयों को कार्बन के ब्रशों B1 तथा B2 हलके से स्पर्श करते हैं।
(इसका चित्र आप भारती भवन की पुस्तक में पृष्ठ संख्या 99 में चित्र 5.13 को देखकर बना लें।)
जब आर्मेचर से धारा प्रवाहित की जाती है तब चुंबक के चुंबकीय क्षेत्र के कारण कुंडली के AB तथा CD भुजाओं पर समान मान के, किंतु विपरीत दिशाओं में बल लगते हैं, क्योंकि इन भुजाओं में प्रवाहित होनेवाली धारा के प्राबल्य समान है, परंतु उनकी दिशाएं विपरीत है। इनसे एक बलयुग्म बनता है जिस कारण आर्मेचर घूर्णन करने लगता है।
आधे घूर्णन के बाद जब CD भुजा ऊपर चली जाती है और AB भुजा नीचे आ जाती है तब वलयों के स्थान भी बदल जाते हैं। इस तरह ऊपर और नीचे वाली भुजाओं में धारा की दिशाएं वही बनी रहती है। अतः आर्मेचर पर लगा बलयुग्म आर्मेचर को लगातार एक ही तरह से घूमता रहता है।
अतः विधुत मोटर एक ऐसा यंत्र है जिसके द्वारा विधुत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।
8. विधुत-चुंबकीय प्रेरण से आप क्या समझते हैं? प्रयोग द्वारा स्पष्ट करें।
उत्तर – जब किसी चुंबक तथा तार की बनी एक बंद कुंडली के बीच की दूरी को शीघ्रता से बदला जाए तो कुंडली में एक क्षणिक के लिए विद्युत धारा प्रवाहित होती है, जब तक कुंडली तथा चुंबक के बीच अपेक्षित गति रहती है, तो इस घटना को विधुत चुंबकीय प्रेरण कहा जाता है।
प्रयोग - तांबे के एक तार को बंद लूप का आकर देकर उसके दोनों सिरों को एक गैलवेनोमीटर G से जोड़ दिया जाता है। एक छड़ चुंबक को लूप के अक्ष की सीध में स्थिर रखते हैं। गैलवेनोमीटर के संकेतक का कोई विक्षेत नहीं होता, अर्थात लूप में कोई धारा नहीं प्रवाहित होती है।
(इसका चित्र आप भारती भवन की पुस्तक में पृष्ठ संख्या 99 में चित्र 5.14a और 5.14a को देखकर बना लें।)
लूप को स्थिर रखते हुए छड़ चुंबक के किसी एक सिरे को तेज से उसकी ओर लाने या उससे दूर ले जाने पर या फिर चुंबक को स्थिर रखकर लूप को तेजी से उसकी ओर ले जाने पर, अर्थात चुंबक और लूप के बीच की दूरी को शीघ्रता से बदलने पर या दूसरे शब्दों में उनके बीच अपेक्षिक गति उत्पन्न करने पर गैलवेनोमीटर के संकेतक का विक्षेप होता है, अर्थात लूप में विधुत धारा उत्पन्न होती है। इस प्रकार से उत्पन्न होने वाली धारा को प्रेरित धारा तथा इस घटना को विधुत चुंबकीय प्रेरण कहा जाता है।
9. नामांकित चित्र द्वारा विद्युत जनित्र की कार्यविधि के सिद्धांत की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर – विद्युत जनित्र एक ऐसा यंत्र है जिसके द्वारा यांत्रिक ऊर्जा को विधुत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।
विद्युत जनित्र की कार्यविधि के सिद्धांत - इसमें विद्युतरोधीत तांबे की तार की कुंडली AB नरम लोहे के क्रोड पर लिपटी रहती है, इसे आर्मेचर कहा जाता है। इस कुंडली को एक शक्तिशाली चुंबक NS जिसे क्षेत्र चुंबक कहते हैं के ध्रुवों के बीच स्थित चुंबकीय क्षेत्र में तेजी से घुमाया जाता है। कुंडली के तार के दोनों छोर तांबे के विभक्त वलय के दोनों अर्धों C1 एवम् C2 से जुड़े होते हैं। दो कार्बन ब्रश B1 एवम् B2 विभक्त वलयों को हलके से स्पर्श करते हैं। ब्रश इस तरह व्यवस्थित रहता है कि जब कुंडली ऊर्ध्वाधर स्थिति को ठीक ठीक पर करती है तो विभक्त वलय के प्रत्येक अर्ध एक ब्रश से दूसरे ब्रश के साथ संपर्क बदलने के बिन्दु पर ही होते हैं। इस विभक्त वलय को दिक्परिवर्तक कहते हैं।
कुंडली के घूर्णन और विभक्त वलय द्वारा प्रेरित धारा की दिशा में परिवर्तन के कारण बिन्दु P एवम् Q के बीच जुड़े प्रतिरोधक R में लगातार एक ही दिशा में विधुत धारा प्रवाहित होती है। इस धारा को दिष्ट धारा कहते हैं और इस जनित्र को डायनेमो या दिष्ट धारा जनित्र कहते हैं।
इसका चित्र आप भारती भवन की पुस्तक में पृष्ठ संख्या 100 में चित्र 5.17 को देखकर बना लें।
यदि एक विभक्त वलय के स्थान पर दो सर्पी वलय C1 और C2 का उपयोग किया जाए तो प्रत्येक अर्धघूर्णन के बाद धारा की दिशा बदल जाती है। इस प्रकार प्राप्त धारा को प्रत्यावर्ती धारा कहते हैं और इस जनित्र को प्रत्यावर्ती धारा जनित्र कहते हैं।
इसका चित्र आप भारती भवन की पुस्तक में पृष्ठ संख्या 101 में चित्र 5.18 को देखकर बना लें।
10. समझाएं की किन-किन कारणों से परिपथ के साथ अर्थ वायर और फ्यूज की व्यवस्था की जाती है।
उत्तर – अर्थ वायर को सुरक्षा की दृष्टि से लगाया जाता है। जब भी विधुत धारा अवश्यकता से अधिक हो जाता तो ये यह अर्थ वायर धारा को भूमि के अंदर ले जाता है धारा को संतुलित करता है।
जब परिपथ में अतिभारण और लघुपतन के कारण या मेन्स में वोल्टता का मान एक सीमा से अधिक बढ़ जाने पर अधिक धारा प्रवाहित होती है जिससे घर में लगे विद्युत उपकरण जल या खराब हो सकते हैं इससे बचने के लिए फ्यूज तार का इस्तेमाल किया जाता है। ज्यादा धारा प्रवाहित होने से उत्पन्न ऊष्मा फ्यूज तार को गला देती है और उपकरण बच जाते हैं।
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