जैव प्रक्रम : पाठ – 4
जैव प्रक्रम : उत्सर्जन
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10th Biology Solutions (Notes) in Hindi
अतिलघु उतरिय प्रश्न
1. कार्बोनिक अणुओं के विखंडन से उत्पन्न सबसे प्रमुख उत्सर्जी पदार्थ क्या है?
उतर – CO2
2. एमिनो अम्ल के विखंडन से उत्पन्न उत्सर्जी पदार्थ के नाम एल 8लिखें।
उतर – अमोनिया, यूरिया तथा न्यूक्लियस।
3. यूरिया और अमोनिया में अपेक्षाकृत कम जटिल और ज्यादा विषैला कौन है?
उतर – यूरिया अमोनिया की अपेक्षा ज्यादा जटिल, परंतु कम विषैला यौगिक है।
4. अमीबा में उत्सर्जी पदार्थ शरीर की सतह से किस कार्य विधि से बाहर निकलता है?
उतर – विसरण विधि द्वारा।
5. मूत्र मार्ग क्या है?
उतर – वृक्क द्वारा बनाया गया अपशिष्ट पदार्थ जो मूत्राशय से शरीर के बाहर निकलता है, मूत्रमार्ग कहलाता है।
6. मनुष्य के वृक्क के दो महत्वपूर्ण कार्यों के नाम लिखें।
उतर – उत्सर्जी पदार्थ का निष्कासन तथा जल एवम् रक्त की सफाई करना।
7. वृक्क से संबद्ध उत्सर्जन में भाग लेनेवाली अन्य रसायनों के नाम लिखें।
उतर – मुत्रवाहिनी, मूत्राशय तथा मूत्रमार्ग।
8. वृक्क की रचनात्मक एवम् क्रियात्मक ईकाई क्या है?
उतर – नेफ्रॉन
9. मनुष्य के प्रत्येक वृक्क में नेफ्रॉन की संख्या कितनी है?
उतर – 1 million
10. जीवों के शरीर में उत्पन्न अनावश्यक एवम् विषाक्त पदार्थों को शरीर से बाहर निकलने वाली क्रिया क्या कहलाती है?
उत्तर – उत्सर्जन।
11. जंतुओं के शरीर में जल की मात्रा संतुलन जिस क्रिया के द्वारा होता है, वह क्रिया क्या कहलाती है?
उतर – जल संतुलन।
12. मानवमुत्र में जल की प्रतिशत की मात्रा कितनी होती है।
उतर – 96%
13. वृक्क के क्षतिग्रस्त हो जाने पर इसका कार्य जिस अतिविकसित मशीन से संपादित कराया जाता है, वह क्या कहलाता है?
उतर – डायलिसि मशीन।
15. पौधों के उत्सर्जी पदार्थ रेजिन तथा गोंद पौधों के किस उत्तक में संचित रहते हैं?
उतर – जाईलम उत्तक में।
16. पौधों में गैसीय अपशिष्ट का उत्सर्जन रंध्रों के अतिरिक्त किन अन्य छिद्रों द्वारा होता है?
उतर – वातरंध्रों द्वारा।
17. बबूल के पौधें से निकलना वाला गोंद पौधों में होनेवाली किस प्रकार के क्रिया के फलस्वरूप उत्पन्न होता है?
उतर –उत्सर्जन क्रिया के फलस्वरूप उत्पन्न होता है एवम् विसरण द्वारा बाहर निकलता है।
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लघु उत्तरीय प्रश्न
1. उत्सर्जी पदार्थ से आप क्या समझते हैं?
उतर – उपचायी क्रियाओं के दौरान जीव शरीर में बना हुआ ऐसा बेकार अपशिष्ट पदार्थ जिसका हमारे शरीर में कोई कार्य नहीं होता, जो हमारे शरीर के किसी न किसी उत्सर्जी अंगो द्वारा बाहर निकल जाता है, उत्सर्जी पदार्थ कहलाता है। जैसे मलमूत्र, पशीन।
2. उत्सर्जन की परिभाषा लिखें।
उतर –जीव शरीर के भीतर बना हुआ अनावश्यक एवम् विषाक्त पदार्थ जिसका निस्काषन अति आवश्यक, वैसे पदार्थ का बाहर निकलना उत्सर्जन कहलाता है।
3. मानव मूत्र के अवयवयों की प्रतिशत मात्रा क्या है?
उतर –यदि कोई व्यक्ति प्रतिदिन 80 से 100 ग्राम प्रोटीन का सेवन करता है तो उसके मूत्र में 96% जल, 2% यूरिया, 2% अन्य पदार्थ पाए जाते हैं।
4. ग्लोमरुलर फिल्ट्रेशन क्या है?
उतर – शरीर के विभिन्न भागों से जेब अशुद्ध रक्त एवम जल वृक्क में आता है, तब वृक्क का ग्लोमरूलर उन सारे अपशिष्ट पदर्थो को छानकर बोमेन कैप्सूल में संचित कर देता है और आवश्यक पदार्थों का शरीर के शेष भागों में पहुंचा देता है। यह पूरी प्रक्रिया ग्लोमरुलर फिल्ट्रेश कहलाता है।
5. वृक्क के महत्वपूर्ण कार्यों का उल्लेख करे।
उतर – वृक्क का महत्वपूर्ण कार्य निम्न है:
(i) स्रवण __ वृक्क हमेशा अपने अंदर से पोटैशियम प्रोटोंस स्रावित करती है, जो मूत्र नली के आंतरिक दीवार चिकना बनता है, जिससे पेशाब बाहर निकलता है।
(ii) अवशोषण__जब वृक्क द्वारा बहुत सारे पदार्थो का शुद्धिकरण होता है, उसी समय वृक्क ग्लूकोज को अवशोषित कर लेती है, जिससे मूत्र जलन रहित होकर बाहर निकलता है।
(iii) ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेशन__ इसमें वृक्क अशुद्ध रक्त एवम् जल को छानकर बोमेन कैप्सूल में एकत्रित करता है और आवश्यक पदार्थ का शरीर से शेष भाग तक पहुंचाता है।
6. पौधे अपना उत्सर्जी पदार्थ किस रूप में निष्कासित करते हैं?
उतर –पौधे अपना उत्सर्जी पदार्थ ठोस, द्रव और गैस के रूप में निस्काशित करते हैं। गैस के रूप में ऑक्सीजन रंध्रों एवम् वात रंध्रों द्वारा निकलते हैं। ठोस के रूप में वे अपने पत्तियों एवम छाल के विलगाव से इन उत्सर्जी पदार्थो का निष्कासन होता है। द्रव के रूप में लैक्टस जो गोंद एवम् दूधिया तरल रूप में होता है।
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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. कृत्रिम वृक्क क्या है? यह कैसे कार्य करता है?
उतर – जब कभी विशेष परिस्थिति में जैसे संक्रमण, मधुमेह या सामान्य से अधिक रक्तचाप या किसी प्रकार के चोट के कारण वृक्क क्षतिग्रस्त होकर अपना कार्य करना बंद कर देता है, जिससे शरीर में अनावश्यकता से अधिक मात्रा में जल, खनिज या यूरिया जैसे जहरीला पदार्थ एकत्र हो जाता है, जिससे रोगी मर सकता है। अतः रोगी को जीवित रखने के लिए वृक्क का कार्य एक अतिविकसीत मशीन से होता है, जिसे डायलिसिस मशीन कहते हैं, यह कृत्रिम वृक्क तरह कार्य करता है। इसकी क्रिया सरल होती है। इस मशीन में एक टंकी होता है, जो डायलाइजर कहलाता है जिसमें डायालायसेट नामक तरल पदार्थ भरा होता है और इस पदार्थ में सेलोफोन से बनी बेलनाकार रचना लटकी रहती है। यह रचना आंशिक रूप से पारगम्य होती है जो विलय का ही विसरण होने देता है। डायालायसेट की संद्रता सामान्य उत्तक द्रव जैसी होती है। परंतु इसमें नाइट्रोजनी विकार एवम् लवण की अत्यधिक मात्रा नहीं होती है। डायलिसिस के समय रोगी के शरीर का रक्त एक धमनी के द्वारा निकालकर उसे 0 डिग्री तक ठंडा करके रक्त को एक विशिष्ट प्रतिस्कंदक से उपचारित कर तरल अवस्था में ही रखा जाता है और रक्त को एक पंप की मदद से डायलाइजर में भेजा जाता है। यहां रक्त से नाइट्रोजन विकार विसरित होकर डायलिसिस डायालायसेट में जाता है और इसी तरह शुद्ध किए गए रक्त के पुनः शरीर के तापक्रम पर लाया जाता है। फिर इस रक्त को पंप की मदद से एक शिरा के द्वारा रोगी के शरीर में वापस पहुंचा दिया जाता है। रक्त के शुद्धिकरण की यह प्रक्रिया हिमोडायलिसिस कहलाता है।
2. मनुष्य में वृक्क तथा उससे संबउत्सर्जी अंगों का वर्णन करे।
उतर – मनुष्य में वृक्क सबसे महत्वपूर्ण उत्सर्जी अंग मनुष्य में एक जोड़ा वृक्क होता है। प्रत्येक वृक्क उदरगुहा की पृष्ठिय देहभिति से सटे हुए कशेरूकदंड के दोनो ओर स्थित होते हैं। प्रत्येक वृक्क ठोस गहरे भूरे लाल रंग का होता है तथा इसका आकार सेम के बीज के समान होता है। यह करीब 10 cm लंबा, 5 से 6 cm चौड़ा तथा 2.5 से 4 cm मोटा होता है।वृक्क संबंध उत्सर्जी अंग मूत्रवाहिनी, मूत्राशय एवम् मूत्रमार्ग है।
मूत्रवाहिनी प्रत्येक वृक्क के हाईलम से एक मूत्रवाहीनि निकली होती है। इसका शीर्ष भाग, जो वृक्क से बाहर निकलता है, थोड़ा ज्यादा मोटा होता है। यह पीछे मूत्राशय में खुलती है।
मूत्राशय नाशपाती के आकार की पतली दिवारवाली एक थैली के समान रचना है, जो उदरगुहा के पिछले भाग में रेक्टम के नीचे स्थित होता है।
मूत्रमार्ग मूत्राशय के पिछले भाग से एक नली होती है। जिससे मूत्र शरीर से बाहर निकल जाता है।
3. वृक्क की आंतरिक संरचना का वर्णन करे।
उतर – वृक्क की आंतरिक संरचना__ प्रत्येक वृक्क बाहर से कैप्सूल से ढका होता है। प्रत्येक वृक्क में एक बाहरी भाग कोर्टेक्स तथा अंदर का भाग मेडुल्ला कहा जाता है। 15_16 पिरामिड जैसी रचनाओं का बना होता है, जिसे वृक्क शंकु कहते हैं। प्रत्येक वृक्क में सूक्ष्म, लंबी कुंडलित नलिकाएं होती है, जिसे नेफ्रॉन कहते हैं। नेफ्रॉन वृक्क की रचनात्मक एवम् क्रियात्मक ईकाई होती है। प्रत्येक वृक्क में लगभग 1 मिलियन नेफ्रॉन होता है। प्रत्येक नेफ्रॉन का आरंभ प्यालें जैसी रचना से होती है जिसे बोमेम कैप्सूल कहते हैं। यह ग्लोमेरुलरस नामक रक्त कोशिकाओं के एक जाल को घेरता है।
4. वृक्क के द्वारा उत्सर्जन क्रिया कैसी होती है? समझाइए।
उतर – वृक्क के द्वारा उत्सर्जन क्रिया निम्न दो चरणों में पूरा होती है:
(i) ग्लोमेरूलर फिल्ट्रेशन__ यह एक छन्ना की तरह कार्य करता है। अभिवाही धमनिका जिसका व्यास अपवाही धमनीका से अधिक होता है। रक्त के साथ यूरिया, यूरिक अम्ल, जल, ग्लूकोज लवण प्रोटीन इत्यादि ग्लोमेरुलस में लाती है यह पदार्थ बोमेन संपूट की दीवार से छनकर नेफ्रॉन में चले जाते हैं। ग्लोमेरुलस की कोशिकाएं से द्रव के छनकर बोमेन संपूट की गुहा में पहुंचने की प्रक्रिया को परानिस्पंदन कहलाता है।
(ii) ट्यूबलर पुनर्पोषण__ ग्लोमेरुलस फिल्ट्रेट अब नलिकाओं से होकर गुजरता है। इसी समय कोशिकाएं उन पदार्थों को शोषित कर लेती है। जिनकी आवश्यकता होती है तथा जिन पदार्थो की आवश्यकता नहीं होती उन्हें छोड़ देती है। साधारणतय सारा ग्लूकोज पुनः शोषित हो जाता है तथा जल की अधिक मात्रा का भी शोषण एवम दूषित पदार्थों का उत्सर्जन हो जाता है।
5. पौधों में उत्सर्जन कैसे होता है?
उतर –पादप में जंतुओं के तुलना विशिष्ट अंग नहीं पाए जाते हैं। इनमें उत्सर्जन के लिए विभिन्न तरीके अपनाए जाते हैं। श्वसन क्रिया से CO2 लेना और ऑक्सिजन अपशिष्ट के रूप में छोड़ जाता है। जल वास्पोत्सर्जन क्रिया द्वारा मुख्यत रंध्रों एवम् पौधे अन्य भागों से निकल जाता है। बहुत से पौधे कॉर्बोनिक अपशिष्टों को उत्पन्न करते हैं जो उनकी मृत कोशिकाओं जैसे अंतकाष्ठ में संचित रहते हैं। पौधे उत्सर्जी पदार्थो को अपनी पत्तियों एवम् छाल में भी संचित करते हैं। पत्तियों के गिरने एवम् छाल के विलगाव से इन उत्सर्जी पदार्थों का पादप शरीर से निष्कासन होता है। कुछ उत्सर्जी पदार्थ कोशिकीय रिक्तिकाओं में जमा रहता है। विभिन्न चपाचायी क्रियाओं के दौरान टैनिन, रेजिन और गोंद आदि उत्सर्जी पदार्थ बनता है। टैनिन वृक्षों के छाल में रेजिन एवम् गोंद पुराने जाईलम में संचित रहता है। कुछ पौधे में उत्सर्जी पदार्थ गाढ़े दूधिया तरल लैटेक्स के रूप में होते हैं। ये पीपल, बरगद या पीला कनेर में पाया जाता है। बबूल के पौधों में गोंद उत्सर्जी पदार्थ है। और चीड़ में रेजिन अपशिष्ट है। जलीय पौधे उत्सर्जी पदार्थ को विसरण द्वारा जल में तथा स्थलीय पौधे उत्सर्जी पदार्थ को अपने आसपास के मृदा में निष्कासित करते हैं।
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Prakash Kumar
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